प्रथम विश्वयुद्ध व कामागाटामारू प्रकरण

प्रथम विश्वयुद्ध 1914

अंग्रेजो ने प्रथम विश्वयुद्ध में स्वशासन का प्रलोभन देकर भारतियों को युद्ध में सम्मिलित होने के लिए राजी कर लिया। युद्ध में एक तरफ मित्र राष्ट्र जिसमें इंग्लैंड, फ़्रांस, रूस आदि थे, जबकि युद्ध में दूसरी तरफ जर्मनी, इटली, ऑस्ट्रिया, तुर्की आदि शामिल थे ।
तात्कालिक कारण – आस्ट्रिया के राजकुमार “आर्कड्युक फर्डीनेंट” की सिराजेवा में हत्या हुई थी ।
समाप्ति – 1919 में वर्साय ( पोलैंड की राजधानी ) की संधि से प्रथम विश्वयुद्ध की समाप्ति हुई । (CGPSC IMP)

कामागाटामारू प्रकरण 1914

कामागाटामारू प्रकरण कनाडा में भारतियों के प्रवेश से सम्बन्धित एक विवाद था। कनाडा सरकार ने ऐसे भारतियों को अपने यहाँ प्रवेश वर्जित कर दिया था, जो सीधे भारत से नहीं आते।
 
भारतीय मूल के व्यापारी “गुरुदत्त सिंह” या गुरदीप सिंह ने कामागाटामारू नामक एक जहाज को किराये पर लेकर दक्षिण पूर्वी एशिया के लगभग 376 यात्रियों को लेकर “बैंकुवर” की ओर रवाना हुए, ताकि वे लोग वहां जाकर सुखमय जीवन व्यतीत कर सके और भारतीय स्वतंत्रता संग्राम का हिस्सा बन सके 
 
कामागाटामारू जहाज के बैंकुवर तट पर पहुँचने से पहले ही कनाडा सरकार ने प्रतिबन्ध लगा दिया, बैंकुवर तट पर पुलिस की घेराबंदी से यात्री जहाज से उतर नहीं 
 

प्रथम विश्वयुद्ध व कामागाटामारू प्रकरण

यात्रियों के अधिकार के लड़ाई हेतु — हुसैन रहीम, बलवंत सिंह तथा सोहन लाल पाठक की अगुवाई में शोर-Shore कमिटी का गठन हुआ 
 
अमेरिका में रह रहे सोहन सिंह भाखना, भगवान् सिंह, राम सिंह, बरकत उल्ला तथा रामचंद्र आदियों ने यात्रियों के समर्थन के लिए आन्दोलन चलाया 
 
कनाडा सरकार के सख्त रवैये के कारण कामागाटामारू जहाज को बैंकुवर छोड़ना पड़ा, जिसे अंग्रेजो ने सीधे कलकत्ता आने का आदेश दिया 
 
कामागाटामारू जहाज के “बजबज” (कलकत्ता) पहुँचने पर यात्री और पुलिस के मध्य झड़प हुई, जिसमें कुछ यात्री मारे गए तथा शेष को जेल में डाल दिया गया कामागाटामारू एक जैपनिस ( जापानी) शब्द है जिसका अर्थ जहाज है 
 
 

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