राष्ट्रपति की शक्तियां

शक्तियां 

  1. कार्यपालिकायी शक्तियां
  2. विधायी शक्तियां
  3. न्यायिक शक्तियां
  4. क्षमादान की शक्तियां
  5. वित्तीय शक्तियां
  6. सैन्य शक्तियां
  7. आपातकालीन शक्तियां 
  8. कुटनीतिक शक्तियां
  9. स्वविवेक

कार्यपालिकायी शक्तियां – अनुच्छेद 78

राष्ट्रपति संसद का अभिन्न अंग है, तथा राष्ट्र के सभी उच्च पदों की नियुक्ति राष्ट्रपति करता है । प्रधानमंत्री, मंत्री परिषद, केन्द्रशाषित प्रदेशों का प्रशासन, अनुसूचित क्षेत्रों का प्रशासन ।

अनुच्छेद 78  : प्रत्येक कार्यपालिक निर्णय या विधि प्रस्ताव की जानकारी प्रधानमंत्री , राष्ट्रपति को देगा । 

किसी भी कार्यपालिक निर्णय अथवा विधि प्रस्ताव सम्बन्धित जानकारी राष्ट्रपति द्वारा मांगी जा सकती है, अगर किसी विषय पर किसी मंत्री ने बिना मंत्री परिषद समक्ष रखे निर्णय ले लिया है तो राष्ट्रपति प्रधानमंत्री से कहकर उस विषय को मंत्री परिषद के समक्ष रखवा सकता है ।
राष्ट्रपति सरकार को प्रशासन चलाने सम्बन्धी निर्देश दे सकता है 

विधायी शक्तियां 


अनुच्छेद 85 :  संसद सत्र आहत करना, सत्रावसान करना, विधेयकों को अनुमति देना 
अनुच्छेद 111 : किसी विधेयक के सम्बन्ध में राष्ट्रपति निम्न प्रतिक्रियां दे सकता है :
                        1. अनुमति देना,  2. रोक देना,  3. पुनः विचार के लिए भेजना 

राष्ट्रपति की वीटो शक्तियां :

निलंबनकारी वीटो : (पुनर्विचार) इसका प्रयोग धन विधेयक के लिए नहीं किया जा सकता ।
अत्यान्तिक विटो (absolute Vito) : रोक देना ।
जे.वी. विटो : राष्ट्रपति के लिए विधेयक पर हस्ताक्षर करने हेतु समय सीमा का निर्धारण नहीं किया गया है, अतः जे वी विटो एक परिस्थिति जनशक्ति है । जिसका प्रयोग केवल एक बार राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह के द्वारा राजीव गांधी की सरकार में डाक विधेयक के लिए किया गया था ।
सदस्यों का मनोनयन  – राज्य सभा में 12 सदस्यों का ( कला, साहित्य, विज्ञान, समाजसेवा ) के क्षेत्रो से लोकसभा में 2 सदस्यों मनोनयन अगर उनका प्रतिनिधित्व न हो तो अध्यादेश जारी करने की शक्ति अनुच्छेद 123 के तहत राष्ट्रपति मंत्री परिषद के सलाह पर अध्यादेश जारी कर सकता है 
यह अध्यादेश तब जारी किया जा सकता है जब संसद के सदस्य सत्र में न हो और किसी विषय पर कानून बनाना आवश्यक हो । यह अध्यादेश संसद का सत्र पुनः संगठित होने से 6 हफ़्तों तक तथा कुल मिलाकर अधिकतम 6 माह तक मानी होता है । परन्तु इन 6 हफ़्तों के पहले संसद इसे स्वीकार या निरस्त भी कर सकती है ।
“यह अध्यादेश किसी भी समान विधि की शक्ति रखता है परन्तु इससे संविधान संशोधन नहीं किया जा सकता ।”

अध्यादेश जारी करने की शक्ति का कई बार दुरुपयोग किया जाता है, तथा इसके माध्यम से सामान्य विधियों का निर्माण किया जाता है । 1990 के दशक में एक ही अध्यादेश को 14 बार लाया गया था ।
D.C. वाधवा मामले में उच्चतम न्यायालय ने इस स्थिति पर रोक लगाने की मंशा से यह निर्णय दिया कि अध्यादेश का उपयोग सामान्य विधायी प्रक्रिया को प्रतिनिधित्व करने के लिए नहीं किया जा सकता और अगर बिना बदलाव के वही अध्यादेश बिना उसे विधायिका में पारित करने के प्रयास में बार बार जारी किया जाता है तो इसकी न्यायिक समीक्षा की जा सकती है ।
संविधान सभा के अनेक सदस्यों ने अध्यादेश जारी करने की शक्ति का विरोध किया था । इस पर डॉ. बी.आर. अम्बेडकर ने स्पष्टीकरण देते हुए कहा था की अध्यादेश जारी करने की शक्ति कार्यपालिका को किसी आकस्मिक एवं किसी आवश्यक परिस्थिति से निपटने के लिए दी जा रही है ।
अतः स्पष्ट है कि अध्यादेश जारी करने की शक्ति का प्रयोग विशेष व आवश्यक स्थितियों में ही किया जाना चाहिए । 

राष्ट्रपति की पूर्वानुमति 

  • धन विधयेक – पुनर्विचार हेतु नहीं लौटा सकता 
  • संविधान संशोधन – अनुमति देना आवश्यक 
  • राज्य पुनर्गठन विधेयक – सामान्य विधेयक 
  • लोकसभा के अध्यक्ष एवं राज्यसभा के उपसभा की नियुक्ति 
  • अयोग्यता के विषय पर निर्णय करना ( चुनाव आयोग की सिफारिश पर )   

वित्तीय शक्तियां 

  1. राष्ट्रपति वार्षिक वित्तीय विवरण संसद के सदनों में प्रस्तुत करवाता है ।
  2. धन विधेयक या अनुदान मांग राष्ट्रपति की पूर्वानुमति से ही प्रस्तुत हो सकते है ।
  3. प्रत्येक 5 वें वर्ष केंद्र व राज्य के मध्य राजस्व के बंटवारे के लिए वित्त आयोग का गठन करना है ।
  4. नियंत्रण व महालेखा परीक्षक के प्रतिवेदन को संसद में प्रस्तुत करवाता है ।
  5. संचित निधि एवं आकस्मिक निधि पर नियंत्रण रखता है, तथा आवश्यकता पड़ने पर आकस्मिक निधि से अग्रिम भुगतान की अनुमति देता है ।

न्यायिक शक्तियां 

  1. उच्चतम न्यायालय एवं उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति एवं पदमुक्ति ।
  2. अनुच्छेद 143 :  न्यायिक सलाहकार का अधिकार, परन्तु ऐसी सलाह देने के लिए न तो उच्चतम न्यायालय बाध्य है न तो राष्ट्रपति उसे मानने हेतु बाध्य है ।
  3. अपवाद स्वरूप कुछ मामले जैसे  – संविधान पूर्व की संधीया आदि में उच्चतम न्यायालय को परामर्श देना अनिवार्य है ।

क्षमादान की शक्तियां 

राष्ट्रपति किसी भी ऐसे मामलें में जिसमें फैसला 
  • सैन्य न्यायालय के द्वारा दिया गया हो 
  • संघीय विधि के अंतर्गत दिया हो 
  • कोई मृत्यु दण्ड का फैसला 
सभी में क्षमादान देने की शक्ति रहती है ।
अनुच्छेद 72 : क्षमा, लघुकरण (प्रकृति बदल), परिहार (समय कम), विराम (विशेष परिस्थिति – विकलांग, मानसिक स्थिति, गर्भावस्था) में सजा कम, प्रविलंबन (सजा को स्थगित कर देना या कुछ समय के लिए टाल देना) ।

सैन्य शक्तियां 

  1. राष्ट्रपति तीनों सेनाओं का प्रमुख सेनापति होता है ।  
  2. तीनों सेनाओं प्रमुखों की नियुक्ति करता है । 
  3. युद्ध व शांति की घोषणा करता है  ।

राष्ट्रपति की शक्तियां

आपातकालीन शक्तियां 

राष्ट्रपति को संविधान की 3 प्रकार की आपातकालीन शक्तियां प्राप्त है ।
  • अनुच्छेद 352 –  राष्ट्रीय आपात ।
  • अनुच्छेद 356 –  राष्ट्रपति शासन ।
  • अनुच्छेद 360 –  वित्तीय आपात ।
अनुच्छेद 352  राष्ट्रीय आपात – इसकी घोषणा के 3 आधार है : युद्ध , बाह्य आक्रमण तथा सशस्त्र विद्रोह । 44 वें संविधान संशोधन से राष्ट्रीय आपात में महत्वपूर्ण परिवर्तन किये गए :
  • आंतरिक अशांति की जगह सशस्त्र विद्रोह लिखा गया ।
  • मंत्रिमंडल की सलाह के स्थान पर मंत्री परिषद की लिखित सलाह आवश्यक ।
  • आपात की घोषणा न्याय योग्य ।
  • एक माह के भीतर संसद के दोनों सदनों से विशेष बहुमतों से पारित होना आवश्यक है ।
  • प्रत्येक नए वर्ष आपात काल को पुनः एक माह के भीतर विशेष बहुमत से पारित कराना आवश्यक ।
  • लोकसभा कार्यकाल एक बार में एक वर्ष के लिए  और फिर अनिश्चितकाल के लिए बढाया जा सकता है ।
  • किसी भी समय सामान्य बहुमत वाले प्रस्ताव से आपातकाल को समाप्त किया जा सकता है ।
  • पुरे देश में या उसके किसी एक भाग पर आपातकाल की घोषणा की जा सकती है ।
अनुच्छेद 356  राष्ट्रपति शासन – राष्ट्रपति राज्य में संवैधानिक तंत्र की विफलता पर, राज्य सरकार के द्वारा केंद्र सरकार के आदेश की अवहेलना पर या अपने विश्वस सूत्रों से ऐसा करना आवश्यक हो जाने की सूचना प्राप्त होने पर किसी राज्य में राष्ट्रपति शासन की घोषणा कर सकता है ।
राष्ट्रपति एक बार में 6 माह के लिए तथा अधिकतम 3 वर्षों के लिए लगाया जा सकता है, इसके आगे इसे तभी बढाया जा सकता है जब निर्वाचन आयोग उस राज्य में चुनाव कराने में असमर्थता कर दे । किसी राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाये जाने वाले विधेयक को 02 माह के भीतर सामान्य विधेयक पारित करना अनिवार्य है।
सर्वप्रथम राष्ट्रपति शासन पेप्सू (पंजाब) में लगाया गया था । राष्ट्रपति शासन की शक्ति राज्यों में संवैधानिक तंत्र बनाये रखने तथा देश की एकता, अखंडता की दृष्टि से मजबूत केंद्र की अवधारणा के चलते प्रदान की गई थी किन्तु अनेक मामलों में इस शक्ति का केंद्र में बैठी सरकार द्वारा दुरूपयोग किया गया । राजनैतिक विद्वेष के चलते लोकतान्त्रिक माध्यम से चुनी हुई राज्य सरकारों को बर्खास्त कर दिया गया ।
अतः न्यायालय ने यह माना की अगर राष्ट्रपति शासन गलत मनसा से लगाया गया है  तो उसकी न्यायायिक समीक्षा संभव है ।
CGPSC या UPSC में प्रश्न आ सकते है ?
प्रश्न – राष्ट्रपति शासन के दुरुपयोग के कुछ उदाहरण प्रस्तुत करते हुए इस शक्ति का मुल्यांकन कीजिये ?


अनुच्छेद 360  वित्तीय आपात – देश में वित्तीय अस्थिरता की स्थिति होने पर राष्ट्रपति के द्वारा मंत्री परिषद के सलाह पर वित्तीय आपात की घोषणा की जा सकती है । 
इस दौरान समस्त संवैधानिक पदाधिकारियों ( न्यायधीशों समेत ) अधिकारीयों एवं कर्मचारियों के वेतन में कटौती की जा सकती है । इसके साथ ही राज्य के बजटों को केंद्र के द्वारा नियंत्रित किया जा सकता है ।

कुटनीतिक शक्तियां 

राष्ट्रपति समस्त अंतर्राष्ट्रीय मंचों में देश का प्रतिनिधित्व करता है, तथा सभी संधियाँ और समझौते राष्ट्रपति के नाम से ही किये जाते है ।

स्वविवेक की शक्ति

  1. प्रधानमंत्री की नियुक्ति ।
  2. मंत्री परिषद को भंग करना ।
  3. लोकसभा को भंग करना ।
  4. इसके अतिरिक्त विधेयकों पर स्वीकृति देना राष्ट्रपति का स्वविवेकी अधिकार है ।

अनुच्छेद 88 – मंत्रियों व महान्यायवादी को सदन की कार्यवाही में भाग लेने का अधिकार ( मतदान नहीं कर सकते  )  ।

जे.वी. विटो : राष्ट्रपति के लिए विधेयक पर हस्ताक्षर करने हेतु समय सीमा का निर्धारण नहीं किया गया है,  जिसका प्रयोग केवल एक बार राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह के द्वारा राजीव गांधी की सरकार में डाक विधेयक के लिए किया गया था । विधेयको पर अनुमति के सम्बन्ध में राष्ट्रपति को स्वविवेक की शक्ति प्रदान की गई है,  इसके कारण निम्न है :

  1. जल्दबाजी में किये गए विधायी फैसले पर सरकार को पुनर्विचार का अवसर देना 
  2. गैर संवैधानिक कृत्यों से बचना ।

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