महामाया मंदिर प्राचीन गाथा – रतनपुर

Ancient Story of Mahamaya Temple Ratanpur – महामाया मन्दिर रतनपुर – प्राचीन कथा के अनुसार छत्तीसगढ़ का महामाया मंदिर एक अलौकिक गाथा है। इस मंदिर को कालातीत साम्राज्य की कुलदेवी के रूप में जाना जाता था।

यह बिलासपुर – कोरबा मुख्यमार्ग पर 25 कि.मी. पर स्थित आदिशक्ति महामया देवि कि पवित्र पौराणिक नगरी रतनपुर का प्राचीन एवं गौरवशाली इतिहास है। यह 52 शक्तिपीठों में से एक है। मंदिर का निर्माण 11 वीं और 12 वीं शताब्दी के बीच हुआ था।इसका निर्माण राजा रत्नदेव प्रथम द्वारा ग्यारहवी शताबदी में कराया गया था ।

यह माना जाता है कि देवी का अभिषेक और पूजा पहली बार कलिंग के राजा रत्न देव ने 1050 ईस्वी में की थी जब वह शिफ्ट हुए थे । यह माना जाता है कि मंदिर की स्थापना उस स्थान पर की गई थी जहाँ राजा रतनदेव-प्रथम को देवी काली की मण्डली के दर्शन हुए थे।

Ancient Story of Mahamaya Temple Ratanpur

मान्यता है कि Ancient Story of Mahamaya Temple Ratanpur – महामाया मन्दिर रतनपुर  के मंदिर में यंत्र-मंत्र का केंद्र रहा होगा । रतनपुर में देवी सती का दाहिना स्कंद गिरा था । भगवान शिव ने स्वयं आविर्भूत होकर उसे कौमारी शक्ति पीठ का नाम दिया था । जिसके कारण माँ  के दर्शन से कुंवारी कन्याओ को सौभाग्य की प्राप्ति होती है ।
1045 ई. में राजा रत्नदेव प्रथम मणिपुर नामक गाँव में  शिकार के लिए आये थे, जहा रात्रि विश्राम उन्होंने एक वटवृक्ष पर किया । अर्ध रात्रि में जब राजा की आंखे खुली, तब उन्होंने वटवृक्ष के नीचे अलौकिक प्रकाश देखा, यह देखकर चमत्कृत हो गई की वह आदिशक्तिश्री महामाया देवी की सभा लगी हुई है ।
इसे देखकर वे अपनी चेतना खो बैठे, सुबह होने पर वे अपनी राजधानी तुम्मान खोल लौट गये और रतनपुर को अपनी राजधानी बनाने का निर्णय लिया गया तथा १०५०ई. में श्री महामाया देवी का भव्य मंदिर निर्मित कराया गया ।
नवरात्रि के पूरे नौ दिनों तक कलशों को “जीवित” रखा जाता है। यही कारण है कि उन्हें अखंड मनोकामना ज्योति कलश भी कहा जाता है। Ancient Story of Mahamaya Temple Ratanpur – महामाया मन्दिर रतनपुर