निरपेक्ष गरीबी के वैश्विक आंकड़े

निरपेक्ष गरीबी के वैश्विक आंकड़े

वर्ल्ड बैंक ने 2013 की रिपोर्ट में आंकड़े जारी किये है –शीर्षक — “गरीब कहाँ है, सर्वाधिक गरीब कहाँ है, दुनियां में 7 अरब 65 करोड़ लोग रहते है”वर्ल्ड बैंक के अनुसार दुनियां में 120 करोड़ लोग बेहद गरीब की श्रेणी में है।

भारत में गरीबी और बेरोजगारी

भारत में गरीबी और बेरोजगारी 

गरीबी क्या है ? What is Poverty ? 

जब कोई व्यक्ति अपनी आधारभूत आवश्यकता  रोटी, कपडा तथा माकन को पूरा न कर पाए वह गरीबी रेखा के अंतर्गत आता है । लेकिन ऐसी गरीबी निरपेक्ष गरीबी है, क्यूंकि ये देश काल परिस्थिति के अनुसार नहीं बदलती। निरपेक्ष गरीबी  का अर्थ हर जगह गरीबी ।
गरीबी का दूसरा आधार तुलनात्मक / सापेक्ष गरीबी है , यहाँ हम किसी की तुलना में आय या जीवन स्वर को मापते है, ऐसे में हमें गरीबी के साथ जो नजर आती है वो है आर्थिक विषमता , इसलिए अल्पविकसित या विकसित में निरपेक्ष गरीबी देखि जाति है ।
निरपेक्ष गरीबी का प्रयोग गरीबी की संख्यां पता करने में होता है, और सापेक्ष गरीबी का प्रयोग आर्थिक विषमता को पता करने में होता है ।

गरीबी का मापन कैसे किया जा सकता है ?

निरपेक्ष गरीबी को मापने का तरीका गरीबी रेखा को निर्धारित करके “Head Count Method” से उस रेखा के निचे आने वाले लोगो की गणना करनी चाहिए । 
 

राष्ट्रीय आय और आर्थिक संवृद्धि में सम्बन्ध

राष्ट्रीय आय और आर्थिक संवृद्धि में सम्बन्ध
राष्ट्रीय आय और आर्थिक संवृद्धि का सम्बन्ध उत्पादन से है। जब उत्पादन बढेगा तो राष्ट्रिय आय ( National Income) बढेगा, और जब ये बढेगा तो विकास दर ( Growth Rate ) भी बढेगा।
यदि जनसंख्याँ ( Population ) ज्यादा होगी तो यह विकास दर को नहीं बढ़ने देगी, और इसे अवशोषित कर लेगी । इसके विपरीत जनसंख्याँ बढ़ने से राष्ट्रीय आय तो बढ़ेगी पर प्रति व्यक्ति आय नहीं बढ़ेगी ।

भारतीय अर्थशास्त्री प्रो. राजकृष्णा ने आर्थिक संवृद्धि या राष्ट्रीय आय को जनसंख्याँ से जोड़कर प्रस्तुत किया। उन्होंने 1950-1980 के आंकड़े इकठ्ठे किये और कहा की इस वर्ष आर्थिक दर 3-4% बढ़ा और इसी वर्ष जनसंख्याँ भी 2-2.5% बढ़ी ।
इसलिए इसे जनसंख्याँ ने अवशोषित कर लिया और वास्तविक वृद्धि धीमी रही । इसी धीमी गति को उन्होंने “हिन्दू वृद्धि दर” कहा । विरोध होने के बाद इसे “समाजवादी वृद्धि” का नाम दिया गया । “अरुण सौर्य” ने इस शब्द का प्रयोग किया था ।
अरुण सौर्य ने कहा था की भारत की विकास दर कम होने का करण समाजवादी सोच है । जब हमने 1991 में पूंजीवाद को अपनाया तो हमने हिन्दू विकास दर या समाजवादी वृद्धि दर या धीमी वृद्धि  दर के मिथक को हमने तोड़ दिया । क्यूंकि 1950 के बाद हमारा विकास दर 6% रहा ।

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भारत में राष्ट्रिय आय की गणना एवं उनका इतिहास

भारत में राष्ट्रिय आय की गणना एवं उनका इतिहास

भारत में राष्ट्रिय आय – सर्वप्रथम राष्ट्रिय आय की गणना दादा भाई नैरोजी ने सं 1868 में कराई,  भारत की प्रतिव्यक्ति आय रूपये 20 प्रतिव्यक्ति प्रतिवर्ष बताई । 

क्षेत्रक के आधार पर अर्थव्यवस्था

क्षेत्रक के आधार पर अर्थव्यवस्था
क्षेत्रक के आधार पर अर्थव्यवस्था   – हमने अर्थव्यवस्था के प्रकारों के बारे में जाना जिसमें अलग आधारों पर इसे विभाजित किया गया है जिसमें से हम निम्नलिखित आधारों के बारे में जान चुके है –

आज हम “क्षेत्रक के आधार ” पर प्राथमिक , द्वितीयक एवं तृतीयक अर्थव्यवस्था के विषय में पढेंगे ।

अर्थव्यवस्था का क्षेत्रक आर्थिक गतिविधियों से निर्धारित करते है – इसके तीन प्रकार है – 1. प्राथमिक अर्थव्यवस्था 2. द्वितीयक अर्थव्यवस्था 3. तृतीयक अर्थव्यवस्था ।

प्राथमिक अर्थव्यवस्था (Kshetrak Ke Aadhar Par Arthvyavastha)

इस अर्थव्यवस्था में प्रकृति आधारित उत्पादन को लेते है इसलिए यहाँ – कृषि, पशु-पालन, मतस्यन, वानिकी, खनन इत्यादि अभी आर्थिक गतिविधियाँ आती है 
 
पशु-पालन, मतस्यन व वानिकी को कृषि संलग्न कहते है, छत्तीसगढ़ में खनन द्वितीयक अर्थव्यवस्था में आता है । इसलिए प्राथमिक क्षेत्र को कृषि भी कहते है 
 

आर्थिक गतिविधि इकाइयाँ और आर्थिक स्वामित्व

आर्थिक गतिविधि इकाइयाँ और आर्थिक स्वामित्व
Economic Activity Units and Economic Ownership – आर्थिक गतिविधि इकाइयाँ और आर्थिक स्वामित्व – इसके पहले हमने पढ़ा की ” क्षेत्रक के आधार पर ” अर्थव्यवस्था जिसमें हमने आर्थिक गतिविधि – प्राथमिक, द्वितीयक एवं तृतीयक अर्थव्यवस्था के बारे में जाना।
आज हम ” क्षेत्रक के आधार पर  ” में   आर्थिक ईकाइयां, आर्थिक स्वामित्व ( सार्वजनिक क्षेत्र , निजी क्षेत्र ) तथा कम्पनी ( प्राइवेट लिमिटेड तथा पब्लिक लिमिटेड ) के बारे में पढेंगे ।

आर्थिक गतिविधियाँ -Economic Activity
1. प्राथमिक अर्थव्यवस्था 2. द्वितीयक अर्थव्यवस्था 3. तृतीयक अर्थव्यवस्था – पिछले अध्याय में हमने पढ़ लिया है , समझने के लिए पिछला अध्याय देखे ।

आर्थिक ईकाइयाँ -Economic Units

1. संगठित क्षेत्र Organized Sector

संगठित क्षेत्र की ईकाइयां में  वह ईकाई होती है जहाँ सभी आर्थिक ईकाईयों का पंजीकरण ( Registration ) सरकारी संस्था में  किया जा चूका हो ।

2. असंगठित क्षेत्र Unorganized Sector

असंगठित क्षेत्र की ईकाइयां में  वह ईकाई होती है जहाँ किसी आर्थिक ईकाईयों का पंजीकरण ( Registration ) सरकारी संस्था में  नहीं हुआ हो ।
भारत में 80% असंगठित क्षेत्र है, कृषि इसी के अंतर्गत आता है ।

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