संविधान संशोधन -राज्यसभा

भाग – 20 , अनुच्छेद 368 

 A. संविधान की अंतिम व्याख्या – उच्चतम न्यायालय

B. संविधान में संशोधन – संसद

राज्यसभा

  1. सामान्य बहुमत से संशोधन – संसद सदस्यों के विशेषाधिकार जैसे वेतन भत्ते , नागरिकता प्रावधान, राज्य गठन आदि का अनुच्छेद 368 के अंतर्गत संशोधन नहीं किया जा सकता है ।
  2. विशेष बहुमत से संशोधन – विशेष बहुमत एवं आधे से अधिक राज्यों की स्वीकृति होनी आवश्यक है ।  अनुच्छेद 368 के तहत संघीय मामले – राष्ट्रपति की चुनावी प्रक्रिया,  उच्चतम न्यायालय।
  3. मूल ढांचा का संशोधन – मूल ढांचा का संशोधन नहीं हो सकता – व्यस्क मताधिकार, मूल ढांचे की अवधारणा, न्यायायिक पुनरवलोकन ।

आरक्षण : 95 वां संशोधन  – 2022 तक बढ़ा दिया गया है । 

भारतीय संविधान में संसद का उच्च, स्थायी एवं वरिष्ठों का सदन कहा जाने वाला सदन राज्य सभा है, इसकी संवैधानिक स्थिति की तुलना यदि हम लोकसभा से करते है, तो 3 स्थिति प्राप्त होती है ।

बहुत से मामलों में राज्यसभा की स्थिति लोकसभा के समान है, जैसे – सामान्य विधेयक, संविधान संशोधन विधेयक, राष्ट्रपति का निर्वाचन, महाभियोग अध्यादेश की स्वीकृति एवं आपातकाल की स्वीकृति इत्यादि ।

कुछ मामलों में राज्यसभा को लोकसभा से असमान स्थिति प्राप्त है – धन विधेयक, विनियोग विधेयक, संयुक्त बैठक में लोकसभा की संख्या ज्यादा, बजट पर केवल चर्चा का ही अधिकार इत्यादि  ।

संविधान संशोधन -राज्यसभा

उपर्युक्त मामलों के अलावा राज्यसभा को कुछ विशेषाधिकार भी प्राप्त है, जैसे – अनुच्छेद 249 राज्य सूचि में से विधि बनने का अधिकार, एवं अनुच्छेद 312 के द्वारा केंद्र एवं राज्य दोनों के लिए अखिल भारतीय सेवा के सृजन हेतु अधिकृत करने का अधिकार केवल राज्य सभा को ही है  ।

उपरोक्त बिन्दुओं का विश्लेषण करने पर ज्ञात होता है कि हमारी राज्यसभा की स्थिति उतनी दुर्बल नहीं है जितनी की ब्रिटिश संवैधानिक व्यवस्था में है  ।  दूसरी और राज्यसभा की वित्तीय मामलों एवं मंत्री परिषद के मंत्रियों के उपर नियंत्रण के अतिरिक्त अन्य सभी मामलों में राज्यसभा की शक्तियां लोकसभा के बराबर है  ।

भले ही राज्यसभा को लोकसभा की तुलना में कम शक्तियां दी गई हैं किन्तु इसकी उपयोगिता भी है  ।  यह लोकसभा द्वारा जल्दबाजी में बनाये गए, दोषपूर्ण, लापरवाही से, और अविवेकपूर्ण विधान की समीक्षा एवं उस पर विचार के रूप में जाँच करता है  । यह केंद्र के अनावश्यक हस्तक्षेप के खिलाफ राज्यों की हितों रक्षा करते हुए संघीय संतुलन को बरक़रार रखती है  ।

इस प्रकार राज्य सभा का महत्व हमारे संघीय ढांचे के लिए एक अहम् भूमिका का योगदान करती है  ।