भारत में राष्ट्रिय आय की गणना एवं उनका इतिहास

भारत में राष्ट्रिय आय – सर्वप्रथम राष्ट्रिय आय की गणना दादा भाई नैरोजी ने सं 1868 में कराई,  भारत की प्रतिव्यक्ति आय रूपये 20 प्रतिव्यक्ति प्रतिवर्ष बताई ।

  1. दूसरी गणना सं 1905 में लार्ड कर्जन ने करायी जिसकी औपचारिक आंकड़े प्राप्त नहीं हुई ।
  2. तीसरी गणना एफ. सिरोज ने 1917 में करायी थी । उपरोक्त गणनाएं अवैज्ञानिक मानी गई, क्यूंकि सिर्फ कृषि क्षेत्र के आंकड़े इकठ्ठा किये गए शेष का नुमन लगा लिया गया था ।
  3. पहली वैज्ञानिक गणना जी.व्ही.के. राव ने 1931-32 में की जिसमें उन्होंने 76/- रूपये प्रतिव्यक्ति आय बताई ।
  4. स्वतंत्रता के बाद राष्ट्रीय आय समिति बनाई गई, इसे पी. सी. महलनोबिस कमिटी भी कहा गया, समित ने सुझाव दिया की राष्ट्रीय आय की गणना के लिए एक अलग संस्था बना दिया जाये।
  5. 1951 में CSO ( Central Statistics Organization) नामक संस्था सामने आई , आज भी CSO राष्ट्रीय आय की गणना व घोषणा करता है ।
  6. 1971 में एक नई संस्था NSSO का पुनर्गठन कर दिया गया, हालांकि यह संस्था 1950 से कार्य कर रही थी, लेकिन इसे औपचारिक रूप 1970-71 में दिया गया । इसका कार्य था राष्ट्रीय से जुड़े आंकड़े तैयार करना ।
  7. 2005 में रंगराजन समिति की सिफारिश पर NSC ( National Statistical Commission ) की स्थापना का सुझाव दिया गया ।
  8. इन्हें NSSO का कार्य दिया जाने वाला था । 2006 से सुरेश तेंदुलकर की अध्यक्षता में आयोग ने काम करना भी शुरू किया, लेकिन यह NSSO का कार्य लेने में विफल रहा ।
अतः वर्तमान में राष्ट्रिय आय की गणना  CSO व NSSO दोनों मिलकर करते है । वर्तमान में राष्ट्रीय आय की गणना के लिए वर्ष 2011-12 को आधार वर्ष की तरह लिया जाता है ।

भारत में राष्ट्रिय आय की गणना एवं उनका इतिहास

राष्ट्रीय आय की गणन से जुड़े नए प्रयोग

A. क्रय शक्ति क्षमता – राष्ट्रीय आय की गणना सामान्यतः मौद्रिक मूल्य पर होती है । क्रय शक्ति क्षमता का अर्थ है मुद्राओं में विनिमय दर को नकारना है, सभी देशों की मुद्राओं का मूल्य सामान्य मानना । अतः किसी वस्तु व सेवा के लिए भुगतान किसी भी देश में समान होना ।
विकसित देशो की मुद्रा का मूल्य कमजोर कमजोर देशों की तुलना में ज्यादा होता है । ऐसे में विनिमय दर को आधार बनाकर यदि हम भारत की राष्ट्रिय आय की गणना करेंगे तो भारतीय मुद्रा कमजोर होने के कारण राष्ट्रीय आय कम नजर आएगी, यही कारण है की सामान्य गणना में भारत 10 वें स्थान पर आता है ।
भारत JDP के मौद्रिक आधार पर 10 वें स्थान पर है । जब इस विधि से राष्ट्रीय आय की गणना की जाति है तब हम उत्पादन का आकार देखते है ना की उत्पादन का मौद्रिक मूल्य और इस आधार पर भारत दुनियां की सबसे बढ़ी 3rd (तीसरी) अर्थव्यवस्था है
PPP के आधार पर हमारी प्रतिव्यक्ति आय 5350 $ है, लेकिन जैसे ही इसे हम बदलते है तो वर्ल्ड बैंक के अनुसार हमारी प्रतिव्यक्ति आय 1570 $ हो जाति है । और हम यहाँ पर निम्न मध्य अर्थव्यवस्था में आ जाते है ।
B. Green GDP / NNP – इसे एक नया नाम दिया गया है GEP ( Gross Environmental Product )। उत्पादन की प्रक्रिया में या आर्थिक विकास की प्रक्रिया में को Environment नुकसान होता है । इस नुकसान का अनुमान हम GEP से निकाल सकते है ।
GDP – Environment Loss = GEP
Green GDP की गणना सकल घरेलु उत्पाद से पर्यावरण मूल्य को घटाकर की जाति है । यहाँ पर्यावरण मूल्य में शामिल है — जैव विविधिता की क्षति ( Loss of  Bio Divorcity ), jजल की क्षति ( Loss of Water ), प्रदुषण से होने वाली क्षति (Pollution damage) तथा पर्यावरण संरक्षण व संवर्धन (Environmental protection and promotion) ।
इन सब को मिलाकर Green GDP निकलता है। Green GDP यह बताता है की आर्थिक विकास या प्रक्रिया में पर्यावरण का कितना ध्यान रखा गया है। इस प्रकार निकली आय को Green National Income कहा जाता है ।
भारत में उत्तराखंड पहला ऐसा राज्य है जो GDP के GEP के आंकड़े प्रस्तुत करता है । 
 
 
 

Leave a Comment