ऋग्वैदिक काल – राजनितिक संगठन

ऋग्वैदिक समाज कबीलायी था, आर्य जब भारत आये तब वे विभिन्न जनों में विभाजित हो गए । इन जनों का प्रमुख राजन होता था, ऋग्वेद में राजा को जन्स्यगोपा (जनों का प्रमुख) कहा गया ।

राजा का पद वंशानुगत हो गया था फिर भी उसे असीमित अधिकार प्राप्त नहीं थे, क्योंकि उसे कबीलायी संगठन से सलाह लेनी पड़ती थी । “राजा पर नियंत्रण का कार्य सभा एवं समिति नामक संस्था करती थी ।” ऋग्वेद में विदथ नामक संस्था का भी उल्लेख मिलता है जो की आर्यों की प्राचीनतम संस्था है ।

सभा

राजा के सहयोग के लिए श्रेष्ठ एवं अभिजात्य लोगो की संस्था थी, ये संस्था राजनितिक प्रशासनिक कार्यों के साथ साथ न्यायिक कार्य भी करती थी । ये वर्तमान में “मंत्री परिषद” के समान थी ।
इसमें स्त्रियाँ भी शामिल होती थी, ऋग्वेद में सभा का उल्लेख 8 बार किया गया है ।

समिति

समिति में एक काबिले के सभी सदस्य शामिल होते थे,  यह समिति राजा का चुनाव करती थी,  समिति के प्रमुख को “ईशान” कहा जाता था । समिति का उल्लेख ऋग्वेद में 9 बार किया गया है ।

विदथ

यह ऋग्वैद कालिन आर्यों की सबसे महत्वपूर्ण व प्राचीन संस्था थी, इसका उल्लेख ऋग्वेद में 122 बार हुआ है, यह सामाजिक, धार्मिक एवं सैन्य “(सेना) उद्देश्य के लिए कार्य करती थी ।
इसमें स्त्रियाँ भी भाग लेती थी ।

ऋग्वैदिक काल – राजनितिक संगठन

राजा के पदाधिकारी

पुरोहितये राजा का सर्वप्रमुख अधिकारी था, पुरोहित राजा को कर्तव्य पालन का उपदेश देता था, और राजा का पथ प्रदर्शक तथा दार्शनिक के रूप में कार्य करता था । इसके बदले में पुरोहित को गाय तथा दासियाँ एवं प्रचुर दान दक्षिणा दिया जाता था ।
इस काल में वशिष्ट एवं विश्वामित्र दो प्रमुख पुरोहित होते थे ।
सेनानी – सेनानियों का स्थान अधिकारियों में दूसरा था, ऋग्वेद में राजा के पास कोई भी स्थायी सेना का उल्लेख नहीं मिलता । युद्ध के समय व्रात, गण, ग्राम नाम से विभिन्न कबीलायी टोली की नागरिक सेना तैयार कर ली जाती थी ।
व्राजपति – यह चारागाह का प्रमुख अधिकारी था ।
कर संग्रहक अधिकारी – ऋग्वेद में किसी कर संग्रहक अधिकारी का उल्लेख नहीं मिलता है, संभवतः प्रजा स्वेच्छा से राजा को उसका अंश देते थे जिसे बलि कहा जाता था ।
स्पश – गुप्तचर अधिकारी
पूरप – दुर्ग की देखभाल या रक्षा करने वाले अधिकारी ।
उग्र – पुलिस अधिकारी

संगठन

ऋग्वैदिक कालीन आर्यों का जीवन कबीलायी था, एक परिवार के लोग साथ रहते थे जिसे कुल या गृह कहा जाता था और कुल का प्रमुख कुलय होता था ।
अनेक कुल मिलकर ग्राम का निर्माण करते थे, और जिसका प्रमुख ग्रामिणी कहलाता था ।
अनेक ग्राम मिलकर विश का निर्माण करते थे जिसका प्रमुख विशपति कहलाता था ।
अनेक विश मिलकर जन का निर्माण करते थे और जन का प्रमुख राजन कहलाता था ।

ऋग्वेद में जन शब्द का प्रयोग 275 बार हुआ है ।