Floral Separator

Right to Equility

indian constitution

eduinlight

Looking to travel from Venice to London

Enter the most authentic, vintage, and luxury way to ride by train.

अनुच्छेद 14  1. विधि के समक्ष समता 2. विधि का समान संरक्षण  1. विधि के समक्ष समता -  प्रथम प्रावधान अर्थात विधि के समक्ष समता ब्रिटेन के विधि का शासन के सिद्धांत पर आधारित है, इस सिद्धांत के प्रतिपादक ऐ.व्ही. डायसी के अनुसार -- 1. स्वेच्छाचारी अधिकारों का न होना अर्थात सजा विधि के अनुसार ही दिया जाए । 2. सामान्य न्यायालयों के सामने सभी का समान होना । 3. संविधान का स्त्रोत नागरिकों के अधिकार है जो समय समय पर न्यायलयों के द्वारा बताएं गए है, न की संविधान अधिकारों का स्त्रोत है । भारत में प्रथम दो अवधारणाओं को तो स्वीकार किया गया है परन्तु हमारे देश में मौलिक अधिकार का स्त्रोत संविधान है ।  अर्थात विधि के समता के अंतर्गत --- 1. विशेषाधिकारों का अभाव 2. कानून के सामने सभी समान 3. कानून से बढकर कोई नहीं होगा

Looking to travel from Venice to London

Enter the most authentic, vintage, and luxury way to ride by train.

विधि का समान संरक्षण - दूसरा प्रावधान अमेरिका के संविधान से लिया गया है जिसका तात्पर्य यह है की सामान परिस्थितियों में सभी नागरिकों के साथ समान व्यवहार किया जाएगा , अर्थात अगर विशेषाधिकार या निर्योग्यताएं किसी वर्ग को दी जायेगी तो उसमें भी किसी प्रकार का भेदभाव नहीं किया जाएगा । इसी प्रावधान के तहत कमजोर वर्गों महिलाओं,  बालको आदि को विधि का विशेष संरक्षण दिया जा सकता है । विधि के समक्ष समता के अपवाद   1. अनुच्छेद 361 के तहत राष्ट्रपति व राज्यपाल इसके अपवाद है, उन्हें अपने पद में रहते हुए किये गए किसी भी कार्य के लिए किसी न्यायालय के समक्ष पेश नहीं किया जा सकता । पद धारण के समय इनके विरुद्ध फौजदारी मामलें नहीं चलायें जा सकते, न ही उनकी गिरफ्तारी हो सकती है ।  दीवानी मामले चलने के पहले 2 माह का अग्रिम सुचना अनिवार्य है । 2. अनुच्छेद 105 के तहत सांसद एवं अनु. 194 के तहत सांसद व विधायक को सदन के अंदर दिए गए किसी वक्तव्य, मत या किसी भी कृत के लिए न्यायालय के समक्ष प्रस्तुत नहीं किया जा सकता । 3. संयुक्त राष्ट्र संघ के पदाधिकारी व इसकी ईकाइयां, अन्य देश के राजदूत एवं संप्रभु (शासक)। 4. अनुच्छेद 31 ग के अनुसार कुछ निति निर्देशक तत्वों को लागू करवाने के लिए उन्हें मौलिक अधिकारों पर वरीयता दिलाने के लिए अर्थात मौलिक अधिकारों को नजर अंदाज किया जा सकता है । सर्वोच्च न्यायालय के अनुसार जहाँ अनुच्छेद 39 ख और अनुच्छेद 39 ग आते है वहां अनुच्छेद 14 का लोप हो जाता है ।

Looking to travel from Venice to London

Enter the most authentic, vintage, and luxury way to ride by train.

अनुच्छेद 15  a. 15 (i) राज्य किसी व्यक्ति के साथ केवल धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग व जन्म स्थान के आधार पर विभेद नहीं करेगा। b. 15 (ii) प्रवेश का अधिकार -  केवल उक्त आधारों पर किसी नागरिकों को सार्वजनिक दूकान, होटल, सिनेमाघर व मनोरंजन के अन्य स्थानों में प्रवेश से वंचित नहीं किया जा सकता । c. उपयोग का अधिकार - केवल उक्त आधारों पर किसी नागरिक को सार्वजनिक कुओं, तालाब, घाटों, सड़को तथा शासकीय स्वामित्व की अथवा सार्वजनिक उपयोग की अन्य सुविधाओं का उपयोग करने से वंचित नहीं किया जा सकता । d. 15 (iii) राज्य महिलाओं और बालकों के लिए विशेष प्रावधान कर सकता है - महिलाओं को स्थानीय निकायों में आरक्षण, बालको के लिए विद्यालय प्रवेश में विशेष प्रावधान । e. 15 (iv) शासकीय शिक्षण संस्थाओं में सामाजिक व शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों को आरक्षण का प्रावधान । f. 15 (v) निजी शिक्षण संस्थाओं में सामाजिक व शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों को आरक्षण का प्रावधान । 93 वें संविधान संशोधन 2005 के माध्यम से जोड़ा गया यहाँ पिछड़े वर्गों अनुसूचित जाति, जनजाति व अन्य पिछड़े वर्गों को शामिल किया गया है परन्तु अन्य पिछड़े वर्गों के लिए किसी लेयर की अवधारणा का पालन करना आवश्यक है । यह आरक्षण IIT , IIM जैसे उच्च तथा तकनिकी संस्थानों में लागू है 

Looking to travel from Venice to London

Enter the most authentic, vintage, and luxury way to ride by train.

अनुच्छेद 16 - लोक नियोजन में समता  राज्य धर्म, मूलवंश, जाति, लिंग व जन्म स्थान तथा आवास के आधार पर शासकीय नियोजनों में किसी नागरिक के साथ भेदभाव नहीं करेगा । इसके अपवाद है -- 1. संसद विधि बनाकर राज्य के मूल निवासियों के लिए कुछ नौकरियां आरक्षित कर सकती है - वर्तमान में यह आन्ध्र प्रदेश और तेलंगाना में लागू है । 2. राज्य किसी वर्ग के लिए आरक्षण का प्रावधान कर सकता है यदि उस वर्ग का राज्य सेवा में प्रयाप्त प्रतिनिधित्व न हो । 3. धार्मिक न्यास आदि से सम्बंधित नियुक्तियां । 16 (4) के अनुसार सामजिक व शैक्षणिक रूप से पिछड़े वर्गों को नौकरियों में आरक्षण प्रदान किया जा सकता है। प्रारंभ में यह यह आरक्षण अनुसूचित जाति एवं जनजाति के लिए था । 1989 में मोरारजी देसाई की सरकार में बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री व्ही. पी. मण्डल की अध्यक्षता में दूसरा अन्य पिछड़ा वर्ग आयोग स्थापित हुआ । ( काका कालेकर आयोग ) मण्डल आयोग का गठन 1979  रिपोर्ट 1980 - 27% आरक्षण की सिफारिश व्ही. पी. सिंह की सरकार में लागू - 1990 में क्रीमीलेयर नरसिम्हा राव की सरकार में संशोधन हुआ - 1. आर्थिक रूप से कमजोर OBC को ही लाभ 2 उच्च जाति के आर्थिक रूप से कमजोर लोगो में - 10%

Looking to travel from Venice to London

Enter the most authentic, vintage, and luxury way to ride by train.

इंद्रा साहनी मामला ( मण्डल केस ) 1992 1. ओ बी सी के लिए क्रीमीलेयर स्वीकार किया गया । क्रीमीलेयर -  8 लाख से ज्यादा वार्षिक आय, द्वितीय वर्ग के अधिकारी ( शासकीय, अर्द्धशासकीय व निजी ), सेना में कर्नल या उससे उपर के पदों में नियोजन, व्यावसायिक कार्यों में संलग्न ( डॉक्टर, वकील, उद्योग व्यापारी तथा इनकी संताने ) 2. 10% आर्थिक आधार पर दिए गए आरक्षण को निरस्त कर दिया गया । 3. अपवाद को छोड़कर आरक्षण की सीमा 50% से अधिक नहीं होगी । 4. बैकलोग भारतियों में भी 50% सीमा का पालन समाप्ति - 81 वां संशोधन । 5 पदोन्नत्ति में कोई आरक्षण नहीं होगा  - 77 वां एवं 85 वां संशोधन में समर्थन । 6. एक नियमित अन्य पिछड़ा वर्ग आयोग का गठन - इसके लिए रामनंदन समिति का गठन (CGPSC के प्रश्न ) ।

Looking to travel from Venice to London

Enter the most authentic, vintage, and luxury way to ride by train.

अनुच्छेद 17 - अश्पृश्यता का अंत  अश्पृश्यता का शाब्दिक अर्थ नहीं है वरन वह पारंपरिक अर्थ है जिस रूप में यह कुप्रथा का प्रचलन देश में था। इसका किसी भी रूप में व्यवहार करना, समर्थन करना पुर्णतः निषेध किया गया है । इस अनुच्छेद का कोई अपवाद नहीं है । इसे लागू कराने के लिए संसद ने अश्पृश्यता अधिनियम 1951 बनाया जिसे 1976 में संशोधन कर नागरिक अधिकारों का संरक्षण अधिनियम 1955 कर दिया गया, इसके तहत दोषी को 6 माह की सजा तथा 500 रु दंड का प्रावधान है । अनुच्छेद 18 - उपाधियों का अंत  भारतीय संविधान में वंशनुगत उपाधियों एवं उनसे समाज में उपजी असमानता को समाप्त करने का प्रावधान किया है । शैक्षणिक व सैन्य उपाधियाँ इनके अपवाद है । इसके अंतर्गत --- 1. राज्य किसी को भी उपाधि नहीं देगा । 2. नागरिक राज्य या अन्य देशों से भी उपाधि ग्रहण नहीं करेंगे । 3. राज्य की सेवा में लाभ या विश्वास के पद पर कार्यरत विदेशी उपाधि ग्रहण करने से पहले राष्ट्रपति से अनुमति लेंगे । 4. कोई नागरिक या विदेशी जो राज्य की सेवा में लाभ या सेवा के पद पर है, किसी अन्य देश से कोई उपहार, उपलब्धि या सुविधा या पद बिना राष्ट्रपति के अनुमति के ग्रहण नहीं कर सकते ।

Looking to travel from Venice to London

Enter the most authentic, vintage, and luxury way to ride by train.

उच्चत्तम न्यायलय ने स्पष्ट किया की "भारत रत्न" "पद्म विभूषण", "पद्म भूषण" एवं "पद्म श्री" जैसे नागरिक सम्मान योग्यता को प्रोत्साहित करते है, अतः उपाधि के अंतर्गत नहीं आते । हालाकिं इनका प्रयोग नाम के आगे या पीछे नहीं किया जा सकता । नागरिक सम्मान की स्थापना वर्ष 1954 में की गई, इस वर्ष "सी. राजगोपालाचारी", "सी.व्ही. रमन", "राधाकृष्णन" भारत रत्न बने । जनता पार्टी सरकार के द्वारा इन्हें कुछ वर्ष के लिए समाप्त कर दिया गया था किन्तु कांग्रेस की सरकार ने इनकी पुनः स्थापना की । https://www.rkcinfo.in