कांग्रेस का कलकत्ता व सूरत अधिवेशन

कांग्रेस का कलकत्ता अधिवेशन-1906

विवाद – 1906 में कांग्रेस के कलकत्ता अधिवेशन में अध्यक्ष पद को लेकर उदारवादी व गरम पंथी के मध्य विवाद उत्पन्न हो गया था।
विवाद का अंत – विवाद का अंत कांग्रेस के वयोवृद्ध व्यक्ति नरम पंथी “दादाभाई नैरोजी” को अध्यक्ष बनाकर समाप्त किया गया ।
विशेष – राष्ट्रिय कांग्रेस के इस अधिवेशन में दादाभाई नैरोजी ने पहली बार कांग्रेस के मंच पर “स्वराज” शब्द का प्रयोग किया था ।  दादाभाई नैरोजी ने 1892 में ब्रिटिश संसद के सदस्य के रूप में लिबरल पार्टी में चुने गए थे साथ ही साथ इन्होने यूनिवर्सिटी ऑफ़ लंदन में भी काम किया था ।

कांग्रेस का सुरत अधिवेशन-1907 ( कांग्रेस में फुट )

मतभेद का मूल कारण  – मूल मतभेद स्वराज प्राप्ति के तरीको पर था, नरम दल के नेता 1906 में संघर्ष के लिए स्वराज, स्वदेशी बहिष्कार, राष्ट्रीय शिक्षा सम्बन्धी प्रस्ताव आदि को क्रियान्वित नहीं करना चाह रहे थे। वे क्रमिक सुधारों के पक्षधर थे तथा बहिष्कार के विरुद्ध थे 
 

कांग्रेस का कलकत्ता व सूरत अधिवेशन

संघर्ष – 1906 में कलकत्ता अधिवेशन में दादाभाई नैरोजी को अध्यक्ष बनाकर विभाजन की प्रक्रिया को रोका गया, 1907 में कांग्रेस का वार्षिक अधिवेशन गरम पंथियों का गढ़ नागपुर में होना था, किन्तु फिरोजशाह मेहता के प्रयासों से इसे सुरत स्थान्तरित किया गया ।
 
तात्कालिक कारण – 1907 में फुट का तात्कालिक कारण अध्यक्ष पद का विवाद था, गरम दल के नेता लाला लाजपत राय को अध्यक्ष बनाना चाहते थे जबकि नरम दल जिसका वर्चस्व 1885 से कांग्रेस पर बना हुआ रहा वे रास बिहारी घोष को अध्यक्ष बनाना चाहते थे। यह विवाद अभद्र स्थिति तक पहुँच गई तथा कांग्रेस में फुट पद गई 
 
परिणाम – अंततः रस बिहारी घोष 1907 में कांग्रेस के अध्यक्ष बने, नरम पंथियों का कांग्रेस पर वर्चस्व बना रहा तथा गरम पंथी कांग्रेस से अलग हो गए
तिलक कांग्रेस से बहिष्कृत कर दिए गए और विपिन चन्द्र पाल राजनीति से अवकाश ले लिए । सरकार ने इस फुट का लाभ उठाया 
 
सरकारी प्रतिक्रिया – सरकार ने नरम पंथियों को खुश करने के लिए 1909 में मार्ले-मिन्टो सुधार लाया। गरम पंथियों पर दमनकारी निति अपनाई गई तथा तिलक पर राजद्रोह का आरोप लगाया गया तथा उन्हें 1908 में 6 वर्षों की कारावास हुई , और उन्हें मांडले जेल भेज दिया गया 

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