छत्तीसगढ़ के प्रमुख आदिवासी विद्रोह

छत्तीसगढ़ के प्रमुख आदिवासी विद्रोह – काकतीय वंश के शासन काल में छत्तीसगढ़ दण्डकारण्य क्षेत्र में कई जन जातीय विद्रोह आरम्भ हुए । यह विद्रोह जनजातीय शोषण एवं सांस्कृतिक अस्मिता पर हस्तक्षेप के कारण प्रारंभ हुआ ।

छत्तीसगढ़ के प्रमुख आदिवासी विद्रोह
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हल्बा विद्रोह – 1774-177

  • शासक – अजमेर सिंह
  • नेतृत्त्वकर्ता – अजमेर सिंह
  • विद्रोह क्षेत्र – बड़े डोंगर परगना का क्षेत्र ।
  • कारण – दरिया देव के विरुद्ध अजमेर और दरियादेव के मध्य उत्तराधिकारी हेतु ।
  • परिणाम – अजमेर सिंह की मृत्यु एवं सम्पूर्ण हल्बा विद्रोहियों को समाप्त कर दिया गया ।

भोपालपट्टनम का विद्रोह – 1795

  • शासक – दरिया देव
  • विद्रोह क्षेत्र – भोपालपट्टनम का क्षेत्र ।
  • कारण – अंग्रेजी अधिकारी कैप्टन ब्लंट एवं कुमुक को बस्तर में प्रवेश करने से रोकने के लिए।
  • परिणाम – कैप्टन ब्लंट एवं कुमुक पुनः वापस लौट गए।
 
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छत्तीसगढ़ के प्रमुख आदिवासी विद्रोह

परलकोट का विद्रोह – 24 दिसम्बर 1824 – 1825

  • शासक – महिपाल देव
  • नेतृत्त्वकर्ता – गेंदसिंह ( परलकोट का जमींदार ) छ.ग. व बस्तर के प्रथम शहीद (CGPSC Exam)
  • विद्रोह क्षेत्र – परलकोट ( आबुझमाड़) नारायणपुर का क्षेत्र ।
  • कारण – आबुझमाड़ क्षेत्र को अंग्रेजो के अधीन किये जाने एवं आबुझमाढ़ी आदिवासियों को शोषण से बचने हेतु ।
  • प्रतीक चिन्ह – धावड़ा वृक्ष की टहनी
  • दमनकर्ता – कैप्टन पैबे – 10 जनवरी 1825 को गेंदसिंह को गिरफ्तार किया गया ।
  • परिणाम – 20 जनवरी 1825 को गेंदसिंह को उनके महल के सामने फांसी की सजा दी गई ।

तारापुर का विद्रोह – 1842 – 1854

  • शासक – भूपाल देव
  • नेतृत्त्वकर्ता – दलगंजन सिंह ( तारापुर परगने का जमींदार )
  • विद्रोह क्षेत्र – तारापुर परगना बस्तर का क्षेत्र ।
  • कारण – तारापुर क्षेत्र में कर में वृद्धि होने के कारण । ( मराठो व अंग्रेजो के दो अलग अलग दीवान थे,  जिनका नाम जगबंधु एवं जगरनाथ बहिदार था ।
  • परिणाम – मेजर विलियम्स के द्वारा कर वृद्धि आदेश को वापस लिया गया एवं दीवान को पद से हटाया गया ।
 
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मेंरिया या मारिया का विद्रोह – 1842 – 1863

  • शासक – भूपाल देव
  • नेतृत्त्वकर्ता – हिडमा मांझी
  • विद्रोह क्षेत्र – दंतेवाड़ा ( दंतेश्वरी मंदिर) का क्षेत्र ।
  • कारण – दंतेश्वरी मंदिर में नरबली प्रथा को समाप्त करने के सम्बन्ध में ( तहसीलदार शेरखान के द्वारा दंतेश्वरी मंदिर में सैनिको को प्रवेश कराने पर विद्रोह और बढ़ गया )
  • दमनकर्ता – विलियंस कैम्पवेल
  • परिणाम – नरबली प्रथा समाप्त कर दी गई ।
नोट:-  दंतेश्वरी मंदिर में जिस भी व्यक्ति की बलि दी जाति थी उसे “मेरिया” कहा जाता था ।

लिंगागिरी का विद्रोह – 1856

  • शासक – भैरम देव
  • नेतृत्त्वकर्ता – धुरवा राव माड़िया
  • विद्रोह क्षेत्र – लिंगागिरी का क्षेत्र ।
  • कारण – बस्तर एवं लिंगागिरी के क्षेत्र को ब्रिटिश साम्राज्य में शामिल किये जाने के विरोध में
  • परिणाम – 5 मार्च 1856 को धुरवा राव को फांसी दी गई , इन्हें बस्तर का दूसरा शहीद कहा जाता है।
नोट:-लिंगागिरी विद्रोह को बस्तर का महान मुक्ति संग्राम कहा जाता है क्यूंकि यह 1857 की क्रांति से सम्बंधित है ।
 
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कोई विद्रोह – 1859

  • शासक – भैरम देव
  • नेतृत्त्वकर्ता – नांगुल दोरला (फोतेकेले  के जमींदार)
  • सहयोगी – राम भोई (भोपालपट्टनम के जमींदार ) तथा जग्गा राजू (भेज्जी का जमींदार)
  • कारण – हैदराबाद की कम्पनी द्वारा साल वृक्ष की कटाई की जा रही थी जिसका विरोध किया गया ।
  • नारा – एक साल वृक्ष के पीछे एक व्यक्ति का सिर
  • परिणाम – कुछ समय के लिए साल वृक्ष की कटाई पर रोक लगा दिया गया ।
नोट:-कोई विद्रोह का चिपको आन्दोलन से तुलना की जाति है

मुरिया विद्रोह – जनवरी 1876

  • शासक – भैरम देव
  • नेतृत्त्वकर्ता – झाड़ा सिरहा
  • कारण – दीवान गोपीनाथ कापरदास एवं मुंशी आदित्य प्रसाद के अत्यधिक शोषण किये जाने के विरुद्ध में । 2 मार्च 1876 को स्थानीय जनता के द्वारा राजा भैरम देव के महल को घेरकर काला-दिवस के रूप में मनाया गया ।
  • प्रतीक चिन्ह – आम वृक्ष की टहनी
  • परिणाम – अंग्रेजी अधिकारी जोर्ज मैके ने समझौता कराया और 8 मार्च 1876 को जगदलपुर में उड़िया दरबार का आयोजन किया गया।
नोट:-इसे बस्तर का स्वाधीनता संग्राम कहा गया है । ( CGPSC Exam )
छ.ग. की कायापलट करने वाले – छिन्द्क नागवंशी 

भूमकाल विद्रोह – फरवरी 1910

शासक – रूद्र प्रताप देव
नेतृत्त्वकर्ता – गुन्डाधुर ( नेतानार )
विद्रोह क्षेत्र – बस्तर ( विद्रोह प्रारम्भ – पुषपाल बाजार )
कारण – अंग्रेजी दीवान बैजनाथ पंडा के शोषण से बचाना, वनों के प्रयोग तथा स्थानीय शराब बनाने की प्रथा पर प्रतिबन्ध लग जाने के कारण किया गया। रानी स्वर्णकुंवर तथा लाला कालेन्द्र सिंह ( दलगंजन सिहं के पुत्र)के सम्मान को वापस दिलाने हेतु विद्रोह । बैजनाथ पंडा के स्थान पर कालेन्द्र सिंह को दीवान बनाने हेतु ।
प्रतिक चिन्ह –  लाल मिर्च, आम की टहनी, धनुष , नाला, मिटटी का ढेला
मुखबिर – सोनू मांझी 
दमनकर्ता – अंग्रेज अधिकारी कैप्टन गेयर तथा डीबेंट

अन्य विद्रोह

1. किसान – उरांव विद्रोह  – 1918
शासक – रामानुज प्रताप सिहं देव 
शासन क्षेत्र – कोरिया रियासत 
नेतृत्त्वकर्ता – सम्पूर्ण उरांव जाति
 
2. गोंड विद्रोह  – 1932
शासक – रामानुज शरण सिहं देव 
शासन क्षेत्र – सरगुजा रियासत 
नेतृत्त्वकर्ता – सम्पूर्ण गोंड जाति
क्यों सिरपुर को बनाई अपनी राजधानी –  पांडू बंश – छत्तीसगढ़ 

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