कवर्धा फणी नागवंश छत्तीसगढ़

Kawardha Fani Naagvansh Chhattisgarh – पिछले भाग में हमने छत्तीसगढ़ बस्तर के छिंदक नागवंशी के बारे में पढ़ा । जिसमें छत्तीसगढ़ के नागवंश  राजवंश  की जानकारी प्राप्त की, इसी को आगे बढ़ाते हुए हम आज यहाँ छत्तीसगढ़ के मध्यकालीन इतिहास के कवर्धा फणी नागवंशी के बारे में पढेंगे ।

Kawardha Fani Naagvansh Chhattisgarh

फणी नागवंशी – Fani Naag Vanshi (11-14 वीं शताब्दी )

राजधानी – कवर्धा ( छत्तीसगढ़ )
 
छत्तीसगढ़ के कवर्धा ( कबीरधाम ) क्षेत्र में एक और नागवंश राज कर रहा था जिन्हें फणीनाग वंश के नाम से जाना गया, इस वंश के संस्थापक “राजा अहिराज” थे  
इनकी जानकारी “मडवा महल” शिलालेख से प्राप्त होती है, जिसमें इस वंश के 24 शासकों के बारे में उल्लेख मिलता है ।
इस वंश के शासक “कल्चुरी” राजाओं के अधीन शासन करते थे, इस वंश के राजाओं द्वारा कल्चुरी संवत का प्रयोग किया गया है जो इनके ” चौर ग्राम अभिलेख” में वर्णित है ।
कवर्धा के नागवंश की उत्पत्ति कुछ “हैहय वंश” के सामान है, इनकी उत्पत्ति जात कर्ण ऋषि की पुत्री मिथिला एवं अहि से मानते है। इसलिए ये स्वयं को अहि मिथिला वंश भी कहते है ।
अहि एवं मिथिला का पुत्र  “अहिराज” हुआ जो इस “फणीनाग वंश“का प्रथम एवं संस्थापक राजा था ।

फणीनाग वंश के प्रमुख शासक

1. गोपाल देव

गोपाल देव ने 1089 ई. ( 11 वीं शताब्दी ) में कवर्धा के चौरा गाँव नामक स्थान पर नागर शैली में “भोरमदेव मंदिर” का  निर्माण करवाया जो एक आदिवासी देव का मंदिर है ।
गोपाल देव कल्चुरी शासक पृथ्वीदेव I के अधीन शासन करते थे ।इसका उल्लेख छपरी से प्राप्त एक प्रतिमालेख से प्राप्त होता है ।

2. रामचंद्र देव

रामचंद्र देव ने 1349 ई. में “मड़वा महल” का निर्माण करवाया था , जो मूलतः आदिवासी देवता “दूल्हा देव” का मंदिर है, यह छपरी ग्राम में स्थित है, इसके अतिरिक्त रामचन्द्र देव ने “छेरकी महल” का निर्माण करवाया ।
रामचंद्र देव का विवाह कल्चुरी वंश की राजकुमारी अम्बिका देवी से मड़वा महल में हुआ था, इसी कारण इसका नाम मड़वा महल पड़ा ।
कवर्धा महल की कलाकृति करने वाले “धर्मराज सिंह” थे , महल के प्रथम गेट को हाथी गेट कहा जाता है ।

3. मोनिंग देव

मोनिंग देव इस वंश के अंतिम शासक थे, इन्हें रायपुर शाखा के कल्चुरी शासक “ब्रह्मदेव राय” ने पराजित किया था।

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