ब्रह्म समाज की स्थापना – राजा राम मोहन राय – राजा राममोहन राय को भारतीय पुनर्जागरण का अग्रदूत कहा जाता है।
यह भी कहा जाता है कि वे पुनर्जागरण के जनक, आधुनिक भारत के निर्माता, धार्मिक सुधार आंदोलन के जनक, भूत और भविष्य के पुल, भारतीय पत्रकारिता के प्रणेता, भारतीय राष्ट्रवाद के पैगम्बर और प्रथम भारत का आधुनिक आदमी।
राजा राममोहन राय को भारतीय पुनर्जागरण का अग्रदूत कहा जाता है। यह भी कहा जाता है कि वे पुनर्जागरण के जनक, आधुनिक भारत के निर्माता, धार्मिक सुधार आंदोलन के पिता, अतीत और भविष्य के पुल, भारतीय पत्रकारिता के अग्रणी, भारतीय राष्ट्रवाद के प्रवर्तक और भारत का प्रथम आधुनिक पुरुष थे ।
जन्म – 1772
स्थान – राधानगर बंगाल
भाषा के ज्ञाता – संस्कृत, अरबी , फ़ारसी, अंग्रेजी, फ्रेंच, लैटिन एवं ग्रीक आदि ।
मृत्यु – 1833 ( ब्रिस्टल इंग्लैण्ड )
राजा राममोहन रॉय से जुड़े कुछ महत्वपूर्ण तथ्य
- उन्होंने अपने विचारों को आगे बढाने के लिए 1814 में आत्मीय सभा की स्थापना की, जो आगे चलकर 1828 में “ब्रह्मसमाज” बना ।
- राजा राममोहन रॉय की भारतीय समाज व संस्कृति में गहरी आस्था थी ।
- उनका मानना था की भारतीय नवजागरण के लिए पाश्चात्य संस्कृति अच्छे तत्वों को स्वीकार करना चाहिए ।
- किन्तु उन्होंने पाश्चात्य संस्कृति के अंध अनुकरण के स्थान पर आधुनिकीकरण पर जोर दिया ।
- 1817 में डेविड हेयर के साथ कलकत्ता में हिन्दू कॉलेज की स्थापना की ।
- 1821 में संवाद कौमुदी पत्रिका का सम्पादन किया ।
- 1822 में फ़ारसी भाषा में “मिरातुल अखबार ” का प्रकाशन किया ।
- 1823 में कलकत्ता यूनेटेरियन कमिटी की स्थापना की, जिसमें द्वारकानाथ टैगोर तथा विलियम एडम उनके सहयोगी थे ।
- 1825 में वेदांत कॉलेज की स्थापना ।
- 1828 में ब्रह्मसमाज की स्थापना ( इसके प्रथम सचिव ताराचंद चक्रवर्ती थे ) ।
- 1829 में सती प्रथा कानून पारित कराया गया ।
- 1830 में ब्रिटेन प्रस्थान
- 1833 में इंग्लॅण्ड के ब्रिस्टल में मृत्यु ।
Raja Ram Mohan Roy and Brahma Samaj राजा राम मोहन राय ब्रह्म समाज की स्थापना
ब्रह्मसमाज
1828 में राजा राममोहन रॉय द्वारा कलकत्ता में ब्रह्मसभा की स्थापना की गई, जिसे बाद में “ब्रह्मसमाज” कहा गया।
स्थापना का उद्देश्य
- इस संस्था के स्थापना का प्रमुख उद्देश्य भारतीय समाज व हिन्दू धर्म में व्याप्त कुरीतियों को दूर कर उन्हें शुद्ध करना था ।
- इस संस्था ने सामाजिक, धार्मिक राजनितिक व शैक्षणिक क्षेत्र में अभूतपूर्व योगदान दिया ।
धार्मिक विचार
- मूर्ति पूजा का विरोध ।
- बहुदेव वाद का विरोध ।
- अवतारवाद का विरोध ।
- पुरोहितवाद का विरोध ।
- पुनर्जन्म के सिधांत का विरोध ।
- पुराणों की आलोचना ।
- वेदान्तों के अध्ययन पर जोर ( उपनिषेद )।
- एकेश्वरवाद का समर्थन ।
इन्होने फ़ारसी भाषा में ” तुहाफत-उल-मुकहदिन” या एकेश्वरवादीयों को उपहार या Gift to Monotheist की रचना की । इन्होने प्रिसेपटस ऑफ़ जीसस की भी रचना की ।
सामाजिक विचार
- राजा राममोहन रॉय की महत्वपूर्ण भूमिका से 1829 में सती प्रथा का अंत हुआ ।
- उन्होंने पर्दाप्रथा, बहुविवाह, सती प्रथा, वैश्यावृत्ति, जातिवाद, बालविवाह आदि का विरोध किया ।
- उन्होंने कर्म आधारित वर्ण व्यवस्था का समर्थन किया ।
- वे स्त्री पुरुष समानता के समर्थक थे ।
- स्त्रियों को शिक्षा दिलाने तथा सम्पति का अधिकार दिलाने का प्रयास भी किया ।
राजनितिक विचार
- वे अन्तर्राष्ट्रीयवादिता के समर्थक थे ।
- उन्होंने भारतीय वस्तुओं पर लगान में कमी ।
- निर्यात शुल्क में कमी ।
- उच्च सेवाओं में भारतीकरण की मांग की ।
शिक्षा, साहित्य एवं पत्रकारिता के क्षेत्र में
- वे अंग्रेजी माध्यम से आधुनिक शिक्षा के समर्थक थे ।
- 1817 में डेविड हेयर के साथ मिलकर उन्होंने कलकत्ता में हिन्दू कॉलेज की स्थापना की ।
- 1825 में वेदांत कॉलेज की स्थापना ।
- राजा राममोहन रॉय को भारतीय पत्रकारिता का अग्रदूत भी कहा जाता है ।
ब्रह्मसमाज का प्रभाव
ब्रह्मसमाज की बौद्धिकता जिसमें भावनाओं का आभाव था, केवल उच्च वर्ग के शिक्षितों को ही आकर्षित कर सका, मध्यम वर्गीय लोगो पर इसका विशेष प्रभाव नहीं पड़ा था ।
राजा राममोहन रॉय के बाद ब्रह्मसमाज
- राजा राम मोहन की मृत्यु के बाद देवेन्द्र नाथ टैगोर ने ब्रह्मसमाज को नेतृत्त्व प्रदान किया ।
- ब्रह्मसमाज में सम्मिलित होने से पहले देवेन्द्र नाथ टैगोर कलकत्ता में तत्वरंजनी सभा की स्थापना की थी, जो 1839 में तत्वबोधिनी सभा में परिवर्तित हुआ ।
- उन्होंने तत्वबोधिनी पत्रिका का भी प्रकाशन किया ।
ब्रह्मसमाज का विभाजन
- ब्रह्मसमाज के विचारों को लेकर 1865 में देवेन्द्र नाथ टैगोर व केशवचंद्र सेन के मध्य विवाद उत्पन्न हुआ, तथा ब्रह्मसमाज दो भागों में बंट गया ।
- देवेन्द्र नाथ टैगोर का परिवर्तन विरोधी दल “आदिब्रह्मसमाज” कहलाया ।
- केशवचंद्र सेन ने “मूलब्रह्मसमाज” से अलग होकर ” भारतीय ब्रह्मसमाज” या ब्रह्मसमाज ऑफ़ इंडिया की स्थापना की थी ।
केशवचंद्र सेन
- केशवचंद्र सेन का ब्रह्मसमाज में प्रवेश 1856 में हुआ ।
- केशवचंद्र सेन ने “बालबोधिनी पत्रिका” निकाली ।
- उन्होंने नव विधान की स्थापना की ।
- 1861 में इन्होने Indian Marriage नामक पत्रिका निकाली ।
- इन्हीं के प्रयास से 1872 में Native Marriage Act पारित हुआ, जिसमें 14 वर्ष से कम आयु की बालिका व 18 वर्ष से कम आयु के बालको का विवाह वर्जित कर दिया गया ।
- केशवचंद्र सेन ने 13 वर्षीय पुत्री का विवाह कुच बिहार ( पश्चिम बंगाल ) के राजा से कर दिया, को की ब्रह्म समाज में द्वितीय विघटन का कारण बना ।
ब्रह्मसमाज का द्वितीय विघटन
- 1878 में ब्रह्मसमाज में पुनः फुट पड गई, केशवचंद्र सेन मतभेद रखने वालों ने साधारण ब्रह्मसमाज की स्थापना की ।
- मुख्य रूप से आनंद मोहन बोस, शिवनाथ शास्त्री द्वारका नाथ गांगुली साधारण ब्रह्मसमाज में थे ।
अन्य तथ्य
- राजा राममोहन रॉय ने प्रज्ञा चाँद नामक पत्रिका का भी प्रकाशन किया ।
- मुग़ल बादशाह अकबर II ने राजा राममोहन राय को “राजा” की उपाधि प्रदान की थी, तथा अपना दूत बनाकर ब्रिटिश सरकार के पास भेजा था ।
- केशवचंद्र सेन ने 1870 में Indian Reform की स्थापना की ।
स्वामी विवेकानंद के बारे में जाने – रामकृष्ण मिशन