राष्ट्रीय आय और आर्थिक संवृद्धि का सम्बन्ध उत्पादन से है। जब उत्पादन बढेगा तो राष्ट्रिय आय ( National Income) बढेगा, और जब ये बढेगा तो विकास दर ( Growth Rate ) भी बढेगा।
यदि जनसंख्याँ ( Population ) ज्यादा होगी तो यह विकास दर को नहीं बढ़ने देगी, और इसे अवशोषित कर लेगी । इसके विपरीत जनसंख्याँ बढ़ने से राष्ट्रीय आय तो बढ़ेगी पर प्रति व्यक्ति आय नहीं बढ़ेगी ।
भारतीय अर्थशास्त्री प्रो. राजकृष्णा ने आर्थिक संवृद्धि या राष्ट्रीय आय को जनसंख्याँ से जोड़कर प्रस्तुत किया। उन्होंने 1950-1980 के आंकड़े इकठ्ठे किये और कहा की इस वर्ष आर्थिक दर 3-4% बढ़ा और इसी वर्ष जनसंख्याँ भी 2-2.5% बढ़ी ।
इसलिए इसे जनसंख्याँ ने अवशोषित कर लिया और वास्तविक वृद्धि धीमी रही । इसी धीमी गति को उन्होंने “हिन्दू वृद्धि दर” कहा । विरोध होने के बाद इसे “समाजवादी वृद्धि” का नाम दिया गया । “अरुण सौर्य” ने इस शब्द का प्रयोग किया था ।
अरुण सौर्य ने कहा था की भारत की विकास दर कम होने का करण समाजवादी सोच है । जब हमने 1991 में पूंजीवाद को अपनाया तो हमने हिन्दू विकास दर या समाजवादी वृद्धि दर या धीमी वृद्धि दर के मिथक को हमने तोड़ दिया । क्यूंकि 1950 के बाद हमारा विकास दर 6% रहा ।
राष्ट्रीय आय और आर्थिक संवृद्धि में सम्बन्ध
विश्व बैंक के आंकड़े के रिपोर्ट के अनुसार भारत दुनियां की 6 वीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है । भारत ने फ़्रांस को पीछे छोड़ इस स्थान को प्राप्त किया है । भारत से उपर जिन अर्थव्यस्था का नाम है वो इस प्रकार है :-
1. US
2. China
3. Japan
4. Germany
5. Britain (UK)
अनुमान है 2017-18 में हमारी विकास दर 7.4 , 2018-19 में 7.8 होगी ये GST और अन्य आर्थिक सुधार प्रपत्र ( Other economic Reform) का परिणाम होगा । इस दौरान विश्व की अर्थव्यवस्था 3.9 से विकास करेगी और हम 7.4/7.8 से ।
2016 में विमुद्रीकरण से अर्थव्यवस्था को जो झटका लगा था वो 2017-18 में संभल गया था ।