राज्य के नीति निर्देशक तत्व – संविधान भाग 4

संविधान के भाग 4 में राज्य के नीति निर्देशक तत्व को रखा गया है, इस भाग में अनुच्छेद 36 से अनुच्छेद 51 है । जिसे तिन भाग – सामजवादी , गांधी वादी तथा उदार बुद्धिवादी की श्रेणी में रखा गया है ।

SL No. समाजवादी गांधीवादी   उदार बुद्धिवादी
1  अनुच्छेद 38   अनुच्छेद 40    अनुच्छेद 44
2 अनु.39,39 a  अनुच्छेद 43-2    अनुच्छेद 45
3 अनु.41 & 42   अनु. 43 (B)    अनु.48 (A)
4  अनु.43-1   अनुच्छेद 46    अनुच्छेद 49
5  अनु.43 (A)   अनु.47-2    अनुच्छेद 50
6  अनु.47 – 1    अनु.48 – 2     अनुच्छेद 51

गैर न्याय योग्य

  1. संसाधन सीमित
  2. लक्ष्य अनेक
  3. सामाजिक परिवर्तन की गति

नीति निर्देशक तत्व का महत्व

  1. राज्य के आदर्श
  2. कल्याणकारी राज्य की स्थापना में सहायक
  3. राजीनीतिक महत्व ( घोषणा पात्र में शामिल ) विपक्ष की आलोचना, जनता द्वारा आंकलन
  4. सर्वोच्च न्यायालय को व्याख्या में सहायता

नीति निर्देशक तत्व – संविधान भाग 4

नीति निर्देशक तत्वों की आलोचना

  1. गैर न्याय योग्य – निसिरुद्दीन के शब्दों में – नव वर्षों के संकल्प जैसा, ज.टी. कृष्णामाचारी – भावनाओं का स्थायी कूड़ादान
  2. अतार्किक रूप से व्यवस्थित
  3. पुरातन , रुढ़िवादी
  4. संवैधानिक संघर्ष

मौलिक अधिकार vs नीति निर्देशक तत्व (DDSP) वाद व विवरण निर्णय

  1. चम्पाकम दोराई राजन  vs स्टेट ऑफ मद्रास वाद 1951 – मौलिक अधिकार प्रभावी 
  2. गोलकनाथ vs स्टेट ऑफ पंजाब वाद 1967  – DPSP को लागू करने के लिए मौलिक अधिकार  में संशोधन नहीं
  3. 25 वां संशोधन 1971 – अनुच्छेद 31 (c) जोड़ा गया, 39 (b) और 39 (c) लागू करने के लिए कोई भी संशोधन में मौलिक अधिकार को असंवैधानिक नहीं, DPSP लागू करने हेतु न्यायिक पुनर्विलोकन नहीं
  4. केशवानंद भारती vs स्टेट ऑफ केरला 1973 – सारे नीति निर्देशक तत्व, मौलिक अधिकार से उच्च है – 42वां संशोधन – अनु. 31 को  मौलिक अधिकार से हटा दिया गया
  5. मिनर्वामिल्स vs यूनियन ऑफ़ इंडिया 1980 – अनुच्छेद 31 (c) पुनः लागू किया गया, संसद  संविधान के किसी भी हिस्से में संशोधन कर सकती है लेकिन वह संविधान के “मूल ढांचे” को  नहीं बदल सकती है।

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