छत्तीसगढ़ में काकतीय , चालुक्य वंश के अधीनस्थ शासन

Kaaktiya Chalukya Vansh Adhinasth Shasan Chhattisgarh – पिछले भाग में हमने छत्तीसगढ़ में  स्वतंत्र काकतीय चालुक्य वंश  के बारे में पढ़ा । जिसमें छत्तीसगढ़ बस्तर में  स्वतन्त्र रूप से शासन करने वाले काकतीय चालुक्य राजवंश की जानकारी प्राप्त की, इसी को आगे बढ़ाते हुए हम आज यहाँ छत्तीसगढ़ के मध्यकालीन इतिहास के काकतीय चालुक्य राजवंश एवं उसके अधीनस्थ स्वरुप शासन काल  के बारे में पढेंगे ।

Kaaktiya Chalukya Vansh Adhinasth Shasan Chhattisgarh

काकतीय /चालुक्य राजवंश के कुछ शासकों ने स्वतन्त्र रूप से शासन किया था जिसके बारे में हम पढ़ चुके है तथा कुछ शासकों ने किसी न किसी बड़े शासक के अधीन रहकर शासन किया था जिसके बारे में हम इस भाग में पढेंगे ।

मराठों के अधीन शासन 

1. दरिया देव ( 1778-1800 ई. )

अजमेर सिंह के विरुद्ध अंग्रेज एवं मराठा शासक अवीर देव एवं जैपोर के शासक विक्रम देव से सहायता लिया एवं अजमेर सिंह से युद्ध कर अजमेर सिंह को पराजित किया ।
दरिया देव मराठो के अधीन प्रथम काकतीय शासक है ।

कोटपाड़ की संधि (1778 ई. ) – काकतीय वंश एवं मराठो के अधीन संधि हुई जिसमें काकतीय वंश मराठों के अधीन एक जमींदारी क्षेत्र बनकर शासन किया करते थे और जो मराठो को 5600 रु टकोली ( कर ) के रूप में दिया करते थे ।
दरिया देव के शासन काल में 1795 ई. में अंग्रेज अधिकारी कैप्टन ब्लंट का छत्तीसगढ़ आगमन हुआ जो कांकेर क्षेत्र तक ही प्रवेश कर सके एवं बस्तर के जनजातियों के विरोध करने पर उन्हें वापस लौटना पड़ा ।

आंग्ल  मराठों के अधीन शासन

1. महिपाल  देव ( 1800-1842 ई. )

महिपाल देव दरिया देव का पुत्र था, इन्होने मराठों की अधीनता स्वीकार नहीं किया और मराठों को टकोली देना बंद कर दिया परिणामस्वरूप व्यौजी भोसलें अपने सेनापति रामचन्द्र बाघ को महिपाल देव के पास भेजा एवं रामचन्द्र बाघ ने महिपाल देव को पराजित किया ।
रामचन्द्र ने पुनः काकतीय वंश को मराठों के अधीन किया और इसके साथ ही सिहावा परगना को 1830 ई.में  मराठा साम्राज्य में सम्मिलित किया ।
इसके शासन काल में तारापुर परगने का प्रमुख परलकोट का विद्रोह ( 1824-1825 ई. ) किया गया । महिपाल देव के 2 पुत्र थे – भूपाल देव एवं दलमंजन सिंह ।

2. भूपाल  देव ( 1842-1853 ई. )

ये महिपाल देव के पुत्र थे। मराठा शासकों के द्वारा दंतेश्वरी मंदिर में नरबली प्रथा रोकने में असफल होने के कारण इन पर अभियोग लगाया गया ।
इनके शासन काल में 2 विद्रोह हुए : 1. तारापुर विद्रोह  2. मेंरिया विद्रोह  

अंग्रेजों के अधीन शासन 

लार्ड डलहौजी के हड़पनिति के तहत नागपुर राज्य का ब्रिटिश साम्राज्य 1855 में विलय किया गया, इस व्यवस्था से सम्पूर्ण छत्तीसगढ़ का क्षेत्र प्रत्यक्ष रूप से ब्रिटिश शासन के नियंत्रण में चला गया 
इस परिवर्तन के कारण सम्पूर्ण बस्तर क्षेत्र  प्रशासनिक एवं राजनितिक रूप से ब्रिटिश साम्राज्य के अधीन हो गया 

1. भैरम देव ( 1853-1891 ई. )

अंग्रेजों के अधीन प्रथम काकतीय शासक थे, इनके शासनकाल में 1855-56 में प्रथम डीप्टी कमिश्नर चार्ल्स इलियट का आगमन हुआ ।
भैरमदेव के द्वारा बस्तर क्षेत्र में प्राथमिक शिक्षा हेतु स्कुल की स्थापना की गई ।
इनके शासनकाल में 3 आदिवासी विद्रोह हुए : 
1. लिंगागिरी विद्रोह (1856-57)
2. कोई विद्रोह (1859)
3. मुड़िया विद्रोह (1876)
नोट: रानी चोरिस देवी का विद्रोह (1878-1886) – रानी चोरिस भैरम देव की पत्नी थी एवं छत्तीसगढ़ की प्रथम विद्रोहिणी थी । इनका मूल नाम जुगराज कुवर था । इन्होने अपने पति के खिलाफ विद्रोह किया था 

2. रूद्र प्रताप देव ( 1891-1921 ई. )

रूद्र प्रताप को ब्रिटिश शासन के द्वारा ” सेंट-ऑफ़-जेरुसलम” की उपाधि दी गई थी, इन्होने जगदलपुर में नगर नियोजन कर जगदलपुर को चौराहों का नगर बनाया ।
इनके शासन काल में “घैटीपोनी” प्रथा प्रारम्भ किया गया, इस प्रथा में कलर, धोबी, पंडरा, सुंडी जाति की महिलाओं को विक्रय किया जाता था ।
रूद्र प्रताप देव के शासनकाल में 1910 में नेतानार के जमींदार गुंडाधुर के नेतृत्त्व में भूमकाल विद्रोह हुआ ।

3. प्रफुल्ल कुमारी देवी  ( 1922-1936 ई. )

ये छत्तीसगढ़ की प्रथम महिला शासिका थी । 1936 में इनकी मृत्यु अपेंडिक्स रोग का इलाज किया जाने के कारण लंदन में हुआ ।

4. प्रवीर चन्द्र भंजदेव  ( 1936-1947 ई. )

ये इस वंश के अंतिम शासक थे । इसके शासनकाल में बस्तर रियासत को जनवरी 1948 में भारतीय संघ में सम्मिलित कर लिया गया ।
नोट: छत्तीसगढ़ शासन द्वारा इनकी स्मृति में “तीरंदाजी” के क्षेत्र में प्रवीर चन्द्र भंजदेव पुरस्कार प्रदान किया जाता है ।

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