शोषण के विरुद्ध अधिकार- अनुच्छेद 23-24

शोषण के विरुद्ध अधिकार

अनुच्छेद 23 – Article 23

बलात श्रम एवं मानव दुर्व्यापार – इसके अंतर्गत बेगार प्रथा, बंधुआ मजदूरी, महिलाओं एवं बालकों का अवैध व्यापार, देवदासी प्रथा, दास प्रथा आदि शामिल है। इसके प्रावधानों को लागू करने के लिए न्यूनतम मजदूरी अधिनियम 1948, ठेका श्रमिक अधिनियम 1971, बंधुआ मजदुर उन्मूलन अधिनियम 1976 तथा समान कार्य के समान वेतन अधिनियम 1976 बनाया गया है।

शोषण के विरुद्ध अधिकार – Right against Exploitation ( अनु. 23-24 )

 

आर्टिकल 19 से 22 – स्वतंत्रता का अधिकार

आर्टिकल 19 से 22 - स्वतंत्रता का अधिकार.
आर्टिकल 19 से 22 – स्वतंत्रता का अधिकार  –  मौलिक अधिकार के भाग में “स्वतंत्रता के अधिकार” में  आर्टिकल 19-22 है । जिसमें , वाक् व अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, प्राण एवं दैहिक स्वतंत्रता, दोष सिद्धि से संरक्षण तथा गिरफ़्तारी से संरक्षण आदि की स्वतंत्रता का उल्लख किया गया है ।

युगल जोड़े की पसंदीदा जगह – मनगट्टा वन्य जिव पार्क – राजनांदगांव

आर्टिकल 19 से 22 – स्वतंत्रता का अधिकार 

आर्टिकल 19 – Article 19

वाक् व अभिव्यक्ति एवं अन्य  स्वतंत्रता – Freedom of Speech and Expression.

आर्टिकल 19 को 6 भागों में विभाजित किया गया है, इसमें 6 प्रकार की स्वतंत्रता का प्रावधान है । यह भाग 19(1) a से f  तक है 
19 (1) a –  वाक् व अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता – उच्चत्तम न्यायलय के द्वारा समय समय पर इस स्वतंत्रता का विस्तार किया गया है । इसमें प्रेस की स्वतंत्रता, पूर्व सेंसरशीप से स्वतंत्रता, प्रसारण का अधिकार, संसद की कार्यवाही प्रसारित करने का अधिकार, चुप रहने की स्वतंत्रता आदि को शामिल किया है 

यह स्वतंत्रता स्वस्थ लोकतंत्र के विकास के लिए सर्वाधिक आवश्यक है तथा इसी के माध्यम से देश में स्वतन्त्र व परस्पर भिन्न विचारों को अभिव्यक्त करने का अवसर मिलता है, परन्तु यह अधिकार असीमित नहीं है, किन्तु इन पर देश की संप्रभुता व अखंडता, राज्य की सुरक्षा, अन्य राज्यों से मित्रता पूर्वक सम्बन्ध, नैतिकता एवं सदाचार, न्यायालय की अवमानना , लोक व्यवस्था के आधार पर प्रतिबन्ध लगाया जा सकता है 
19 (1) b –  शास्त्र रहित एवं शांति पूर्वक सम्मेलन की स्वतंत्रता   – इस पर देश की संप्रभुता व अखंडता एवं लोक व्यवस्था के आधार पर प्रतिबन्ध लगाया जा सकता है । अपराधिक उद्देश्य से किये गए सम्मेलन को या  भारतीय दंड सहिंता की धारा 141 या 144 लागू होने पर बाधित किया जा सकता है ।
19 (1) c –  संघ या समिति बनाने की स्वतंत्रता   – इसके अंतर्गत राजनितिक, सामजिक, धार्मिक या व्यावसायिक संगठन या संघ बनाए जा सकते है परन्तु उन्हें मान्यता प्राप्त करने का मौलिक अधिकार नहीं है ।
इस अधिकार के तहत कुछ नकारात्मक अधिकार भी है जैसे, संघ ना बनाने का अधिकार, संघ की सदस्यता ना लेने का, सदस्यता त्यागने का अधिकार आदि।
मजदुर संगठनों को प्रदर्शन की स्वतंत्रता तो है किन्तु उन्हें हड़ताल या तालाबंदी का अधिकार नहीं है ।
19 (1) d –  भ्रमण की स्वतंत्रता   – इस प्रावधान के तहत देश के नागरिक देश के राज्य क्षेत्र में अबाध रूप से विचरण करने के लिए स्वतंत्र है, यह प्रावधान राष्ट्रीय एकता को मजबूती प्रदान करता है तथा क्षेत्रवादी व संकीर्ण मानसिकता को कमजोर करता है । 
परन्तु यह अधिकार सामान्य जनता के हित एवं जनजातियों के हित के आधार पर सिमित या प्रतिबंधित किया जा सकता है, साथ ही इसके तहत देश से बाहर यात्रा करने का भी अधिकार है परन्तु देश में वापस लौटने का अधिकार प्राण एवं दैहिक स्वतंत्रता के अधिकार के अंतर्गत माना गया है । (CGPSC Exam प्रश्न )
19 (1) e –  आवास की स्वतंत्रता   – इसके अंतर्गत नागरिकों को देश में कही भी आवास या स्थायी निवास करने की स्वतंत्रता है । भ्रमण की स्वतंत्रता की तरह यह भी देश में एकता की भावना को बल देता है यद्यपि इस पर सामान्य जन के हित व जनजातियों के हित के आधार पर अंकुश लगाया जा सकता है ।
19 (1) f –  व्यावसायिक स्वतंत्रता   – व्यवसाय की स्वतंत्रता पर निम्न आधारों पर प्रतिबन्ध लगाए जा सकते है —
1 किसी व्यवसाय के लिए तकनिकी दक्षता जैसे डॉक्टर , वकील ।
2. राज्य किसी भी व्यवसाय पर आंशिक या पूर्ण रूप से एकाधिकार कर सकता है ।
3. अनैतिक व्यवसाय 
4. खतरनाक व्यवसाय 

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आर्टिकल 14-18 – समता का अधिकार

Right to Equality - Articles 14-18
 

Right to equality Articles 14-18 – समानता का अधिकार में 4 अनुच्छेद है, अनुच्छेद 14 से 18 तक । यह प्रथम मौलिक अधिकार है ।

अनुच्छेद 14 

विधि के समक्ष समता
विधि का समान संरक्षण 
 
विधि के समक्ष समता –  प्रथम प्रावधान अर्थात विधि के समक्ष समता ब्रिटेन के विधि का शासन के सिद्धांत पर आधारित है, इस सिद्धांत के प्रतिपादक ऐ.व्ही. डायसी के अनुसार
1. स्वेच्छाचारी अधिकारों का न होना अर्थात सजा विधि के अनुसार ही दिया जाए ।
2. सामान्य न्यायालयों के सामने सभी का समान होना ।
3. संविधान का स्त्रोत नागरिकों के अधिकार है जो समय समय पर न्यायलयों के द्वारा बताएं गए है, न की संविधान अधिकारों का स्त्रोत है ।
भारत में प्रथम दो अवधारणाओं को तो स्वीकार किया गया है परन्तु हमारे देश में मौलिक अधिकार का स्त्रोत संविधान है ।  अर्थात विधि के समता के अंतर्गत —
1. विशेषाधिकारों का अभाव
2. कानून के सामने सभी समान
3. कानून से बढकर कोई नहीं होगा

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भारतीय संविधान – मौलिक अधिकार

Fundamental Rights of India - मौलिक अधिकार

Fundamental Rights of India – मौलिक अधिकार – भारतीय संविधान के तीसरे भाग में अनुच्छेद 12-35 तक मौलिक अधिकारों का वर्णन है । इन मौलिक अधिकारों की प्रेरणा अमेरिका …

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संविधान की विशेषता एवं संवैधानिक विकास

Feature of Constitution and Constitutional Development


Feature of Constitution and Constitutional Development 

संविधान की विशेषताएँ – Feature of Constitution

  • भारतीय संविधान सबसे लम्बा लिखित संविधान है । ( USA का सबसे पहला लिखित संविधान है )
  • कठोरता व लचीलापन का मिश्रण 
  • एकात्मक की ओर झुका हुआ संघात्मक संविधान 

संघात्मक                 एकात्मक 
दोहरी सरकार             केंद्र का शक्तिशाली होना 
शक्तियों का विभाजन             अवशिष्ट शक्तियां 
समवर्ती शक्ति (सूचि)             संघ सूचि में महत्वपूर्ण व अधिक विषय
लिखित संविधान             राज्य सूचि में भी कानून बनाने का संघ को अधिकार 
राष्ट्रपति का निर्वाचन             आपातकालीन प्रावधान 
संविधान की कठोरता             राज्य सभा सीटों का असमान वितरण 
न्यायिक पुन्राविलोकन     एकीकृत न्यायपालिका 
                            एकहरी नागरिकता 
                            एकीकृत नौकरशाही 
                            अखिल भारतीय सेवाएं 
                            राज्यपाल की नियुक्ति 
                            संविधान का लचीलापन 
  • एकीकृत न्यायपालिका एवं नौकरशाही 
  • एकहरी नागरिकता 
  • व्यस्क मताधिकार 
  • गणतंत्रात्मक व्यवस्था 
  • मौलिक अधिकार 
  • मौलिक कर्तव्य 
  • निति निर्देशक तत्व 

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भारतीय संविधान की प्रस्तावना का महत्व

Importance of Indian Constitution Preamble

Importance of Indian Constitution Preambleप्रस्तावना का महत्व – प्रस्तावना वह उद्देश्य है जिसे ध्यान में रखकर संविधान निर्माताओं ने संविधान का निर्माण किया है अर्थात प्रस्तावना संविधान निर्माताओं के स्वप्नों के भारत का प्रतिबिम्ब है ।

“ठाकुर दस भार्गव के शब्दों में “ – प्रस्तावना संविधान निर्माताओं के दिमाग की कुंजी है, तथा यह उनकी आत्मा है ।
“सदस्य – अन्नादि कृष्णा स्वामी अय्यर के शब्दों में “ – प्रस्तावना हमारे दीर्घ कालिक विचारों एवं स्वप्नों की अभिव्यक्ति है ।
“के. एम्. मुंशी के शब्दों में” – प्रस्तावना हमारे सम्प्रभु लोकतान्त्रिक गणराज्य की कुंडली है ।

प्रस्तावना संविधान का भाग है या नहीं ?

संविधान निर्माण के अंत में प्रस्तावना को इसमें जोड़ा गया अतः यह प्रश्न उठा की क्या प्रस्तावना संविधान का भाग है? — बेरुवाड़ी संघवाद में (1960) उच्चतम न्यायालय ने प्रस्तावना के महत्व को स्वीकार किया परन्तु इसे संविधान का भाग नहीं माना 

केशवानंद भारती बनाम केरल वाद 1973 में उच्चतम न्यायालय ने अपने फैसले को पलटते हुए प्रस्तावना को संविधान का अंग माना । 1995 में LIC वाद में भी उच्चतम न्यायालय ने इस व्याख्या को यथावत रखा